यादें गुजर कर हुए फ़क़त परेशान कितने इक तमस में निशार कफ़न कितने छू कर तरजीह देते उल्फत के परवाने अपने बहते लहू की नदियां में ढलते शा इ र कितने तुम मैं आप यही लहजे है तबाह के पहले लक्षण चंद मुस्कुराहट में बिसरा दिय जाते गम के बादल कितने सुकूँ मुनासिब नहीं इक झूठ पे प्यारे धागे टूट ही जाते गुज़रे कल के दरमियान कितने ये तश्नगी का दौर है कामिल राहों में आते जाते रहेंगे अजीज़ लोग कितने भूल कर जीना सिख लो यार तुम भी अब कामिल इतिहास के पन्नो में जिंदा है टूटे आशिक़ कितने । #ग़जल #कामिल-रूह #kamil_kavi #kunu #yqdidi #yqbaba #kunalpoetry #restzone