जन्म से नित ममता की छाया, पितृ वात्सल्य से पूर्ण माया, रस, मोह, गंध, रूप स्वाद का सब सुख आनंद मैंने है पाया... पर कुछ अटका रहता मन में, निज चेतन छूटा हो जैसे... प्रश्न उथल पुथल करते थे, निज अस्तित्व खोजा करते थे अब मैं बेल गृहस्थ वैरागी, शिवमय शाखा पर लिपटी रहती मन अन्तस में रमने वाली, शून्य मौन में ही निधिध्यासित... समझ रही हूं महा मौन को मैं आशा अस्तित्व विहीन हो... #aestheticthoughts #poetictoc #worldpoetryday #confessionalpoem #ATconfessionalpoem #yqdidi