मैं हिन्दू नहीं ना ही मुसलमान हूँ, मैं बूढ़ा नहीं ना ही जवान हूँ, मैं इंजीनियर नही ना कोई किसान हूँ, मैं गीता नहीं ना ही कुरान हूँ। मैं तो बस इंसान हु ॥ और मैं तो बस इंसान हु॥ क्यों बाँट दिया तुमने हमें मजहब के नाम पर, क्यों बाँट दिया तुमने हमें जात-पात के नाम पर, क्यों बाँट दिया तुमने हमें राम और रहीम के नाम पर, अरे क्यों बाँट दिया तुमने हमे आमिर- गरीब के नाम पर॥ इंसानियत मेरा मजहब था ,इंसानियत ही धर्म , इंसानियत के साथ ही करता था सारे कर्म, फिर क्यों इंसान भी इंसान से बांटा गया , इंसानियत के दामन को है तार-तार छांटा गया॥ हिन्दू ने भी बांटा मुझे मुसलमाँ ने भी बांटा, मंदिर ने भी बांटा मुझे मस्जिद ने भी बांटा , रंग में बांटा मुझे हर रूप में बांटा , पर किसी ने आज तक है मेरा दर्द ना बांटा ॥ बांटा तो सब बांटो की कुछ भी साथ न रहने दो, इंसानियत का कोई भी सौगात ना रहने दो धरती तो बाँट ली क्यों आकाश न बांटा , हथियार बाँट ली क्यों खून न बांटा, है धर्म बाँट ली पर विश्वास न बांटा, शमशान बाँट ली पर मौत न बांटा, है फूल बाँट ली क्यों सुगंध न बांटा, पोशाक बाँट ली क्यों देह न बांटा, भाषा तो बाँट ली पर आवाज न बांटा , है गीत बाँट ली पर सुर तो न बांटा , अक्षर तो बाँट दी पर स्याही कहाँ बांटा। खुदां को भी बाँट दी पर खुद को नहीं बांटा ॥ बांटा है क्यों बस मुझको दोस्त, क्यों इनको नहीं बांटा, क्या मैं ही था तेरे रास्ते का चुभता हुआ काँटा, है ईद बाँट ली करवाचौथ भी बांटा , पर दोनों ने मिलकर ॰ कभी क्यों चाँद ना बांटा ॥ आओ मेरे दोस्त फिर से हम इंसान बनते है , दुश्मनी को भूलकर एक साथ रहते हैं , इंसानियत का नन्हा सा हम पौधा लगाएंगे, हम भी खाएंगे फल हमारे बच्चे भी खाएंगे ॥ #इंसानियत