गुजर जाएगा यह वक्त.. हो जाएंगे हृदय फिर से सख्त सूख जाएंगे आंसू सब.. ज्यों आएंगे नये मुकाबले कम्बख्त! खमन पुराने ज़ख्मों पर नहीं, जंग, धूल और काई पर डाल फ़क़त.. चमकाने को समानांतर मुकाम, मरने को जाने करते सब कितने जतन! मन षोडष कलाओं में निपुण, धर लेता अनशन, बन जाता है निर्गुण वर्क चांदी की ना सोने का पानी, कभी बहरुपिए कभी प्रेयस की ज़िन्दगानी! गुजर जाएगा यह वक्त.. हो जाएंगे हृदय फिर से सख्त सूख जाएंगे आंसू सब.. ज्यों आएंगे नये मुकाबले कम्बख्त! खमन पुराने ज़ख्मों पर नहीं, जंग, धूल और काई पर डाल फ़क़त.. चमकाने को समानांतर मुकाम,