तुम 'अक्षर ', किंतु मैं हूँ' नश्वर', फिर भी मिलने को हूँ आतुर प्रतिक्षण.... परिवर्तित होता नित युग व पहर....... तुम अनंत, अगाध, अथाह सागर...... मैं वर्धित, व्यवकलित लहर प्रेम दीप जलता ह्रदय में सिहर -सिहर....... मैं जीर्ण -शीर्ण कंपित इक स्वर.. तुम अमर, अमिट, परिष्कृत 'अक्षर '...मुझ निरीह "स्मृति "को स्वयं में समाहित कर..... कर दो' अमर ' हे अमर "अक्षर "!! #कर दो अमर, हे अमर अक्षर !