मायूस न हो चल उस तरफ़ ख़्वाबों की बस्ती है सोते हैं गहरी नींद उस तरफ़ ख्वाबों की बस्ती है डगर डगर मौत का पहरा है ज़ीस्त नहीं आसाँ चलते हैं चाँद की तरफ़ वहाँ ज़िन्दगी सस्ती है सब को मिलना है इस मिट्टी में, फ़िर कैसी अना फ़िर क्या तेरी और क्या मेरी यहाँ पर हस्ती है शोख़ियों में देखो ज़िन्दगी कितनी हसीं लगती है मय में नहीं, जो तुझमें भी है मुझमें भी मस्ती है लौट आओ अब ख्वाबों की दुनिया से 'सफ़र' संगदिल इस हयात में ग़मों की जबर्दस्ती है 🔹ग़मो की जबर्दस्ती है🔹 अना- ego शोख़ी- चंचलता मय- शराब ♥️ Challenge-571 #collabwithकोराकाग़ज़