शुक्ल पक्ष की, सुहागन पूर्णिमा, सी वो, बिखरती रही, भूमि के आलिंगन को, और..चाहती वो, सिमट जाना, भोर की बाँहों मे, उसने, कभी नही चाहा, कुछ प्रश्नों को, उत्तरित करना, वो सदा, उन्हें माथे की बिंदिया बना, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #अश्रुओं_का_उपवास शुक्ल पक्ष की, सुहागन पूर्णिमा, सी वो, बिखरती रही,