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प्रीत में होके बाबरी, ढूंढन चली मैं मीत, एसो प्रिय

प्रीत में होके बाबरी, ढूंढन चली मैं मीत,
एसो प्रियतम मोहे मिलो, बिसरी जग की रीत,
पर बैरी जे संसार है ना समझो मेरी प्रीत,
पीर उठी ऐसी मन में , के मुख से निकले गीत,
अब आयी हूँ द्वार तिहारे, तोमे पा गयी मीत,
तोहे बसाकर नैनन मे ,अब तोसे निभाउं प्रीत।

©Shraddha #मेरो कान्हा
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Shraddha

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#मेरो कान्हा #कविता

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