सितारों की महफिलों में, रौशनी की कमी नहीं, मैं टूटा हुआ उल्का पिंड, चमकने को तरसता हूँ। हर किसी के जीवन में सावन की फुहारें हो रही है, मैं सीप बनकर भी, स्वाति की बूंद को तरसता हूँ। यहाँ तो हर किसी के, ख़्वाब की ताबीर हो रही है, मैं एक टूटा हुआ ख़्वाब, हकीकत को तरसता हूँ। 📌निचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें...🙏 💫Collab with रचना का सार..📖 🌄रचना का सार आप सभी कवियों एवं कवयित्रियों को प्रतियोगिता:-59 में स्वागत करता है..🙏🙏 *आप सभी 6 पंक्तियों में अपनी रचना लिखें। नियम एवं शर्तों के अनुसार चयनित किया जाएगा।