परदों के पीछे अक्सर लुटाते रहते जो अपने ताज.. दफ़न कई दफां रह जाते है जाने कितने राज़.. कुछ लोग होते है जो ना रुकते किसी को भी हाथ बढ़ाने को.. अल्फाजों में लिखते है वो ..कभी ना होता खुद पर उनको नाज़.. मुकद्दर का खेल हाय! कितना निराला है .. बदलते रहते है अक्सर बस वहीं तो जमाना है.. ना बदले ज़िंदादिल ना बदले वो आलम .. होठों पर खुशी बिखेरते ..उनका बस यहीं तो फसाना हैं... कोई तो नहीं है जो कोशिश करता उनका साथ भी निभाने को.. टूटे रहते है फिर थमते नहीं वो खुद ही को आजमाने को.. हां! ज़िंदादिल हूं मैं भी ..चलता रहा हूं अपनी सफ़र में मैं भी.. अभी थका नहीं हूं ..जी रहा हूं ज़िंदादिली दिखाने को।।।। living life