सुना था, पढा था पर ऐसा पहले कभी देखा नही कचरा रहता कूड़े दान में ही यहां वहां फेंका नही समझने वाले समझ गये है ये प्रशंसा इंदौर की है और झूठी तारीफ करूँ मैं नेता या अभिनेता नही दिल करता है महीने दो महीने का यही बसेरा हो पर दिमाग चिल्लाता है चुप कर इतना पैसा नही राजवाड़ा, काँच मंदिर, छप्पन सब घूम लिया है शाम की गाड़ी है मन दुखी है देखा सराफा नही घरवाले रिश्तेदार सब बुला रहे है निकलना होगा बस अफ़सोस यही है क्यों मेरा बंगाल ऎसा नही— % & #indorediaries