पलकों की हिमगिरी से जब, आंसुओं के झरने बहने लगते है, पीने लायक कहाँ होता है वो पानी, फिर भी अपना वर्चस्व कायम रखते है, चोट तो कभी महसूस नहीं होती उनको, मगर,कंकड़-पत्थर से ख़्वाब टूटने लगते है, सारे कंकड़ एकत्र हो जलोढ़ शंकु बनाते है, रोक नदियों की राह अपना वर्चस्व बताते है, हाँ वो ख़्वाब से कंकड़ जो भाबर कहलाते है, टूट-टूट कर वो पत्थर-सी मूर्त बन जाते है, झरनों को नदियों का रुप देने लगते है, तराई-से सुर्ख समतल कपोल इन्हें ढलने देते है, औरों को खुश करने गुल्म-से ख़्वाब मुस्काने लगते है, निरंतर चलते-चलते ये खादर प्रदेश कहलाते है, कुछ ख़्वाब रिसते-रिसते बांगर बन जाते है, सुर्ख अधरों तक जाते-जाते रफ़्तार धीमी पड़ने लगती है, हाँ ये बहते आंसुओं की नदियाँ डेल्टा बनाने लगती है, जिवाश्मी अवसादों से बनी धरा भूगोल कहलाने लगती है, देखो इन नन्हीं भावनाओं को जोड़ हम विज्ञान बनाते है, फिर भी कहाँ भौतिकी और अध्यात्म में मेल समझ पाते है, भावों और तथ्यों को जोड़ने का हुनर तो कवि ही जानते है। -Vimla Choudhary 23/11/2021 ©vks Siyag #booklover #geometricalart #geography #feeling_by_heart #imotion #Facts #Science #kalmkitakat #Nojotohindi #nojotopoem