वक़्त घड़ी की सुईओं के साथ बीत रहा था, और एकाएक मुझे एहसास हुआ कि मैं कहाँ वक्त जाया किए जा रही हूँ क्यूँ...उसके इन्तजार में वक्त का मायना कम कर रही हूँ जिसको सच्ची मोहब्बत से कोइ सरोकार नहीं है मैं उसी के लिए तड़प रही हूँ बहुत कुछ सोच डाला प्रण किया अब वो नहीं होगा कभी नहीं होगा उसका इन्तजार ऩहीं करेगें ऐसे बेदर्दी के लिए जज्बात को बदनाम नहीं करेगें,लेकिन,,,, वो महज एक दो पल के लिए प्रण था जिसको सालों से दिल में बसाया है वो पल में ही कहाँ से बिषराए जाते है,रह जाता है कुछ ना कुछ हल्की सी कहीं झलक जो उसकी किसी में मिल पाती है बस क्या साहब सारी बुद्धिमानी उसकी याद के आगे धरी की धरी रह जाती है..! #मेरे#जज्बात#कब#समझोगे#तुम#