नहीं किसी का, कसूर है। बनाता यही, तो मिटाता भी यही है। मोहब्बत के नग़मे, सुनाता भी यही है। कहाँ कोई, किस को , कब जानता है, आपस मे सब को, मिलाता भी यही है। यही वक़्त , ज़ख़्म भर देता है हमारे, बिगड़ी सभी की, बनाता भी यही है। इस ख़ुदग़र्ज़ ज़माने का, क्या कहना, इन्सां को शैताँ, बनाता भी यही है। समझ सके न ज़माने को, अच्छे-अच्छे, "फिराक़", तुझको तो कुछ, आता-जाता नहीं है। — % & यही ज़माने का दस्तूर है... #ज़मानेकादस्तूर #collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi