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अपवित्र न हम है , न हमारी सोच है।। यह माहवारी को

 अपवित्र न हम है ,
 न हमारी सोच है।।
यह माहवारी कोई 'शर्मिंदा होने का रोग नहीं' ;
ये जो मेरे तन से "हर महीने, सातों दिन";
जो रक्त बहता है ,
यह कोई अपवित्रता का तो कारण नहीं।।
यह किसी को पिता बने का हक़ देता है,
यह भविष्य में एक नया जीवन देता है।।
अपवित्र न हम है,
न हमारी सोच है।।
इसकी एक-एक बूंद इकठ्ठा होती है,
तब एक नए इंसान का जन्म होता है।।
सालों तक हम पीड़ा सहते है,
पर हम कभी लड़कियां हिम्मत नहीं हारते है।।
हमने महावीर को अपना जीवन का 
वरदान माना है।।
हम अपवित्र न है,
बस हमें सोचकर जीवित रहना है।।

©I_surbhiladha
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