" मैं शराब पीता रहा, शराब मुझको पीती रही, पीता रहा पूरी रात ज़हर पानी की तरह, वो मुझे खोकला करती रही, सोया जब फुटपाथ की चटाई पर, सिक्कों की बौछार होने लगी, मैं शराब पीता रहा, शराब मुझको पीती रही," पेट की भूख घर मे बढ़ने लगी, भर लिया पेट उन्होंने, इंतज़ार की बोतलों से, घर का आँगन सुना हुआ, इंतज़ार की घड़ी जब ख़त्म हुई, मैं शराब पीता रहा, शराब मुझको पीती रही,!!!!! दिन का सूरज सर पर था, होश की किरणे मुझ पर पड़ी, घर के सारे दीपक भुझ गए, चिता की लकड़ी चलने लगी, मैं शराब पीता रहा, शराब हमको पी गयी"!!!! 🖋_नितिन अग्रवाल शराब बर्बादी की जड़ !!