।। ॐ ।। तदभ्यद्रवत्तमभ्यवदत् कोऽसीति वायुर्वा अहमस्मीत्यब्रवीन्मातरिश्वा वा अहमस्मीति ॥ वह 'उसके' (यक्ष के) प्रति द्रुतगति से गया; ‘उसने’ (यक्ष ने) वायु से कहा, ''तुम कौन हो? इसने कहा, ''मैं वायु हूँँ, मैं हीं वह तत्त्व हूँ जो वस्तुओं के ‘मातृ-तत्त्व' में विस्तीर्ण होता है(मातरिश्वा हूँ)। He rushed upon That; It said to him, “Who art thou?” “I am Vayu,” he said, “and I am he that expands in the Mother of things.” केनोपनिषद तृतीय खण्ड मंत्र ८ #केनोपनिषद #उपनिषद #वायु #यक्ष