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इंसां से उम्मीद जो इंसां लगाएगा।। और कुछ नहीं बस ख़

इंसां से उम्मीद जो इंसां लगाएगा।।
और कुछ नहीं बस ख़ता ही खाएगा।।
रब को चाहने वाला नहीं चाहे और कुछ।।
बिना मांगें ही वोह हर शय को पाएगा।। _____________________________________

इंसान से तुम इतनी उम्मीदें ना लगाओ, 
बस रब से तुम उम्मीदों का चिराग जलाओ,
सब नेकीयों और सब्र का सिला बस रब ही देगा, 
है दुनिया के हाथों कुछ नहीं बस दर्द ही मिलेगा,
                    
तुम अपनी खुशियों का ज़खीरा ख़ुद ही बनाओ,
इंसां से उम्मीद जो इंसां लगाएगा।।
और कुछ नहीं बस ख़ता ही खाएगा।।
रब को चाहने वाला नहीं चाहे और कुछ।।
बिना मांगें ही वोह हर शय को पाएगा।। _____________________________________

इंसान से तुम इतनी उम्मीदें ना लगाओ, 
बस रब से तुम उम्मीदों का चिराग जलाओ,
सब नेकीयों और सब्र का सिला बस रब ही देगा, 
है दुनिया के हाथों कुछ नहीं बस दर्द ही मिलेगा,
                    
तुम अपनी खुशियों का ज़खीरा ख़ुद ही बनाओ,