#OpenPoetry सच्चाई यह है कि केवल ऊँचाई ही काफ़ी नहीं होती, सबसे अलग-थलग, परिवेश से पृथक, अपनों से कटा-बँटा, शून्य में अकेला खड़ा होना, पहाड़ की महानता नहीं, मजबूरी है। ऊँचाई और गहराई में आकाश-पाताल की दूरी है। जो जितना ऊँचा, उतना एकाकी होता है, हर भार को स्वयं ढोता है, चेहरे पर मुस्कानें चिपका, मन ही मन रोता है। #OpenPoetry