नज़र मिलती है मग़र कोई बात नहीं होती। चाहत के क़दमों की कोई रात नहीं होती। मेरी गुफ़्तग़ू होती है ग़में-ख़्याल से मग़र- रूबरू तुमसे कोई मुलाक़ात नहीं होती। मुक्तककार- #मिथिलेश_राय