रातें होकर चुप कितना कुछ सहती है ये रातें अब बहूत हुआ इनको भी करनी है कुछ बातें न जानें कितने गुन्हा छुपे है इसकी चुप्पी में फिर भी सब कुछ दाबे है ये अपनी मुट्ठी में इसने इंसानो के असली चेहरे देखे है, महफ़ूजो की रक्षा में लगे यहाँ पहरे देखे है, मासूमों के घाव ये गहरे देखे है, होकर चुप कितना कुछ सहती है ये रातें अब बहूत हुआ इनको भी करनी है कुछ बातें चुप रहने की भी एक सीमा होती है, अब मिले ज़ुबाँ इस रात को, बस यही फरियाद में कहती है।। रातें । ©©©©©©©©©©© • • • • • #सच_से_अधिक_कुछ_नही