अब तो इस क़दर हमे शहर लगता है, हर तरफ़ बस कातिलों का घर लगता है।। उनके घर में तो पेड़ लगा है नोटों का, उनका हर ऐब दुनिया को हुनर लगता है।। वो कहे तो गलत सही भी कहाँ हूँ मैं, अब तो उनके कहने से हमे डर लगता है।। ये मायूस गली का भला मुंतजिर हैं कौन, ये रौब है उनका उनको दफ़्तर लगता है।। और तुम्हे क्या लेना है 'मोहित' किसी से, तुम क़ातिल तुम्हारा हर शेर ज़हर लगता है।। ©M.S.™ Writes #हुनर_किसी_का_गुलाम_नहीं #HandsOn