फूल सी नाजुक खुद को शमशीर बनाती है माँ बच्चों के ख्वाबों की तस्वीर बनाती है कितना टूटती औलाद को कुछ बनाने खातिर माँ हालातों से लड़कर भी तकदीर बनाती है कुछ न हो तो भी भूखा कभी सोने नहीं देती माँ बिना दूध-शक्कर के भी खीर बनाती है फिर मिलतें हर मुकाम से बेधड़क चलकर माँ भीतर हौसलों की ऐसी तासीर बनाती है कहाँ रुकना कहाँ झुकना कहाँ जरूरी है बोलना माँ हर जुबां को इंसानियत की जमीर सिखाती है ऐ खुदा रूठे ना जन्नत किसी नन्हें बच्चे की माँ चली जाए तो लोरियां कौन सुनाती है