तब से लेकर अब तक मैंने लिखे असंख्य पत्र तुम्हें नहीं , अपितु "ख़ुद को" और उन तमाम संभावनाओं को, जहां से जीवन के लौटने की संभावना है। ताकि देख सकूं मैं ख़ुद को अपने पास लौटते हुए .... "आख़िर जीवन को प्रायिकता के क्रम में मैंने प्रेम से पहले रखा है ।।" -Anjali Rai (शेष अनुशीर्षक में....) वैसे तो असंख्य खत लिखे और पढ़े हम दोनों ने ही युग बीतते गए शब्द घटते गए इक्के दुक्के बचे छिटके इधर उधर पन्नों