बे मतलब ही रातों को जागे भी खूब थे वो जिंदगी के सिलसिले भी खूब थे। दिलों का टूटना और आशुओ का बहना बे शक वो हादसे भी क्या खूब थे। बाएं को दांया और दांया को बाया बताते रहे वो मुहब्बत की दुनिया के आईने भी क्या खूब थे। यूं तो दुनिया से हुए न रूबरू अब तक वो आधी रात के सपने भी खूब थे। हक मे कांटे तो आना ही था मेरे की गुल तो सारे गुलशन में खिले भी क्या खूब थे। ©Rohit Kahar #वो_दिन_भी_क्या_खूब_थे #वो_गुज़रे_हुऐ_पल #वो_दिन #मुहब्बत_वाले_दिनों_की_याद_में #OneSeason