कभी टिमटिमाते तारों, तो कभी बहती हवाओं में ढूँढा बहुत है हमनें खुद को कभी ठंडी छाँव में पेड़ों के, तो कभी बाग में महकती फूलों के तलाशा बहुत है अक्सर खुद को दरिया बहा ले गई या सोंख लिया जमीन ने उसको मोहब्बत तो तब भी थी और अब भी है सबसे हमें पर ना जाने क्यूँ उनपर किया भरोसा नहीं मिला अब तक हमको कभी सागर की गहराइयों में तो कभी आसमान की ऊँचाइयों में ढूँढा बहुत है हमनें खुद को ©Nainika Jagat #क्या_मिला