पहुंचा दे मेरा पैगाम, कोई उसके शहर तक, दिल बेचैन उस बेसब्र का, आज भी होगा। बिन जाने मेरा हाल, नहीं सोई वो आज तक, यकीं है खुला, दरवाजा़ उसकी कब्र का, आज भी होगा।। ये किसकी नज़र है, जो हम पर पड़ी है, हमें कर रही जुदा, कमज़र्फ बड़ी है। वहां जा रही है वो, यहां मैं होने को हूं खत्म, क्या बन गए हालात, ये कैसी घड़ी है। एक आखिरी झलक को भी, मोहलत नहीं देती, क्यूं बेदर्द है इतनी, क्यूं ज़िद पर अड़ी है। माथे को चूम कर उसे, मुझे करने दो रुखसत, बद्दुआ है ये किसकी, जो बीच राहों पर खड़ी है।। पहुंचा दे मेरा सलाम, कोई उसकी नज़र तक, इम्तहान उसके सब्र का, आज भी होगा। बिन जाने मेरा हाल, नहीं सोई वो आज तक, यकीं है खुला, दरवाजा़ उसकी कब्र का, आज भी होगा।। #shaayavita #कब्र #kabr #आखिरी_मुलाकात #आखिरीसलाम #पैगाम #सलाम #बिछड़ना #Door