सोच के नहीं लिखता हूं,सोच को मै लिखता हूं।। पैसों से नहीं बिकता जितना रिश्तों में बिकता हू।। वैराग्य नहीं मुझे आती, दिल्लगी में ही टिकता हूं।। इन नैनो से न देख मुझे दिल में ही अच्छा दिखता हूं।। मै जैसा हूं और जिसका हूं,, उसके लिए फरिश्ता हूं।। समाज के कपड़े से निकला एक अनोखा धागा हूं।। न गुड़ गाऊ कुरीतियों का इसलिए अभागा हूं।। निराशा की काली रातों में मै अकेला हूं जो जागा हूं।। और कितनी राते मै जागुंगा ये सोच के घबराता हूं।। कविता नहीं मकसद मेरा,महौल नया बनाता हूं।। जरूरत नहीं संगीत की ऐसी हकीकत गाता हूं।। सब्द मेरे पहले आएंगे सब्दो के बाद मै आता हूं।। क्या करू?? कमी है मेरी मै झूठ नहीं लिख पाता हूं।। क्योंकि सोच के नहीं लिखता,सोच को मै लिखता हूं #meri_soch