शाम दामन में हवा आके सिमट जाती है तल्ख़ रुखसार पे बोसा कोई रख जाती है कुछ इस तरह तस्वीर वो आंखों में उभर आती है रंग जिसके ये ढलती शाम लिए जाती है शाम ढलती है... चांद उठता है हूक उठती है और तस्वीर चटख जाती है टूटकर भी ये सितारों सी जगमगाती है सुनता क्यों नहीं मेरी दुआ बनाने वाले आह मेरी आसमां तलक़ तो आती है #toyou#yqwhy#yqlove#yqtime#yqfate#yqearnestness