उस अनजान रास्ते पर चलने की सोच रही हूं जिसका अभी कोई ठिकाना नहीं है ना जाने कैसा वो रास्ता होगा पर अब जितने की जिद है हार के मुझे दिखाना नहीं है आना नही हैं लौट के फिर इन गलियों में जिनमें मर मरके जीने के सिवा कोई दूसरा बहाना नहीं है अनजान रास्ते पे चलने की जिद सी है अब उसके बारे में जान ने की मन में उठती है बहुत बार तलब बेशूद सी हो गई हूं यहां रहके बहुत कुछ जाना है काफ़ी इल्जाम सहके मन ही मन में नए ख्याल बुन रही हू मैं अपने आप में ही दबी कही खुशियां ढूंढ रही हूं अलग चलने की नई मंज़िल खोज रही हूं जिसका अभी कोई ठिकाना नहीं है उस अनजान रास्ते पर चलने की सोच रही हूं। ©Kusu Simran #रास्ता #अनजान #kusum #kusu_simran #मंजिल #अजनबी #Be #Ha #क्या