बचपन का एक ख्वाब था सुनने सुनाने में जो लाजवाब था सवाल होता क्या बनोगे बड़े होकर? 'भगवान बनूंगा' मेरा जवाब था जब हुये बड़े, तब समझ बढ़ी ख्वाब रह गयी धरी की धरी अपने अपने पर सब अड़ रहे अल्लाह-राम कर सब लड़ रहे जो दिखते नहीं पर बिकते सही और तुम समझते नहीं, सीखते नहीं मेरे बिना दिखे है उत्पात यहाँ दिख जाऊँ ऐसे हालात कहाँ खुद की गलती होगी और मुझपे दोष लगायेंगे पहले कटघरे में बुलाएंगे फ़िर आराम से सजा सुनायेंगे इतना समझा फिर ख्वाब बदल लिया भगवान बनने का मिजाज बदल लिया अब ना अल्लाह बनूंगा, ना राम बनूंगा इंसान की औलाद हूँ, इंसान बनूंगा! ऊपर पढ़ने में दिक्कत हो रही है तो नीचे तो देखो 😎 बचपन का एक ख्वाब था सुनने सुनाने में जो लाजवाब था सवाल होता क्या बनोगे बड़े होकर? 'भगवान बनूंगा' मेरा जवाब था जब हुये बड़े, तब समझ बढ़ी