हां गहराइयों से भी गहरा हूँ मैं तेरा ही जाना पहचाना चेहरा हूँ मैं रुकना मुझे भी नहीं आता था जबसे हूँ तुझसे दूर वहीं ठहरा हूँ मैं आजाद पंछी था कभी आसमान का अब बंदिशे हजार कोई पहरा हूँ मैं दरिया नहीं समंदर सा होना थी जिद अब समंदर भी नहीं कोई सहरा हूँ मैं Haan Gehrayiyo se bhi Gehra hu me Tera hi jana Pehchana Chehra hu me Rukna mujhe bhi nahi aata tha jabse huaa juda wahi Thehra hu me Aazad Panchchhi tha kabhi Aasman ka Ab Bandihsein Hazaar koi Pehra hu me