उर्मिला -लक्ष्मण नई नवेली आई थी मै जनक की दूसरी पुत्री थी मै अपने उन्हे जी भरके देखना चाह्ती थी मै लेकिन अब उन्हे जाना था 14 वर्षो के लिए वनवास और मुझे काटना था विरह की आग अपने प्रेम को दबाकर हमे अब पत्नी धर्म निभाना था उन्हे करनी थी भईया राम और भाभी सीता की सेवा और मुझे करना था उनकी वापिसी का इंतजार मै भी तो जाना चाह्ती थी वन मुझे भी क्यो नही ले गए पिया तुम भईया-भाभी की सेवा करते मै तुम्हारी कर लेती मै भी तो जाना चाहती थी वन मुझे क्यो नही ले गए लक्ष्मण राम कहलाए सीया-वर तुम क्यो नही कहलाए उर्मिला-वर लक्ष्मण तुम समझते हो मै 14 वर्षो से सो रही थी नही मै तुम्हारी विरह की याद मे जल रही थी लक्ष्मण सबने सीता-राम कहा किसी ने उर्मिला-लक्ष्मण क्यो नही कहा लक्ष्मण अभी तो 14 वर्षो बाद वनवास काटके आए थे कुछ ख्वाहिशे कुछ तमन्ना तो पूरी करने देते लक्ष्मण अयोध्या की ख़ातिर तुम्हे जल समाधि लेने की क्या जरूरत थी लक्ष्मण तुमने मैरे बारे कभी नही सोचा लक्ष्मण ।।। -KRISSWRITES 🪶 । ©kriss.writes उर्मिला -लक्ष्मण नई नवेली आई थी मै जनक की दूसरी पुत्री थी मै अपने उन्हे जी भरके देखना चाह्ती थी मै लेकिन अब उन्हे जाना था 14 वर्षो के लिए वनवास और मुझे काटना था विरह की आग