"तुझमें दीदारी-ए-खुदा" में बेकरार रहता हूं तेरी एक झलक पाने के लिए मगर तेरी भी अजीब फितरत है कि जब मौका मिलता है मुझे तुझे निहारने का बदकिस्मती-ओ-इत्तेफ़ाकन से हर बार तब ही तेरी निगाहें मेरी और आ मुड़ती है फिर में दुविधाग्रस्त हो जाता हूं कि या तो में नज़रे फेर लू या फिर नज़रे मिला लूं मगर एक डर भी साथ रहता है कि कहीं मुझपर घूरने का इल्ज़ाम न लग जाए पर खेर छोड़िए मुझे सिर्फ निहारने दीजिए लेकिन इसे गलत न समझिए क्युकी मैं समझता हूं कि इस जहां में खुदा से ज्यादा कोई खूबसूरत नहीं है और जो सबसे ज्यादा खूबसूरत है वो कभी दिखता नहीं है अब अगर जो दिखाई दे रहा है और दिल को खूबसूरत लग रहा है तो यकीनन "उसी दीदारी-ए-हुस्न में ही दीदारी-ए-खुदा है"। "तुझमें दीदारी-ए-खुदा" में बेकरार रहता हूं तेरी एक झलक पाने के लिए मगर तेरी भी अजीब फितरत है कि जब मौका मिलता है मुझे तुझे निहारने का बदकिस्मती-ओ-इत्तेफ़ाकन से हर बार तब ही तेरी निगाहें मेरी और आ मुड़ती है फिर में दुविधाग्रस्त हो जाता हूं कि