समर में भी वो कुटज लहराने का दमख़म रखता है, आ जाये चाहे कितने आंधी तूफ़ान वो मुस्कुराता है, अंतश्चेतना जगाये रखे,यह आत्मविश्वास की नींव है, खिलते पुष्प मरुद्यान में,मरुधरा न जल से निर्जीव है, खुशियों के चिराग़ जब भी जलते, रौनक आ जाती है, ये उंमग के आशियाने की चादर हरबार बिछ जाती है, ये जिंदगी यूँ ही खिलखिलाने की वजह ढूंढ लेती है, आ जाते जज़्बात उमड़ वो दिल की बात कह देती है। दिशा निर्देश: 🎶 समय सीमा: परसों 02:00 बजे तक। 🎶 शब्द सीमा : कविता Caption में नहीं होनी चाहिए। 🎶 जिस चित्र पर रचना दी गयी है, वो चित्र ही बैकग्राउंड में होना चाहिए, इसके सिवा अगर कुछ हुआ, तो रचना मान्य नहीं होगी।