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फिर वही, कुछ गुमसुम , अनाम सा उसी बे-बसी, भरी निं

फिर वही, कुछ गुमसुम , अनाम सा

उसी बे-बसी, भरी निंगाहौ से देखता सा ||

और हर बार सोचने पर, मजबूर कर देता है

वो हर कोई नही करता,जो वो कर देता है ||

 फिर वही, कुछ गुमसुम , अनाम सा

उसी बे-बसी, भरी निंगाहौ से देखता सा ||

और हर बार सोचने पर, मजबूर कर देता है

वो हर कोई नही करता,जो वो कर देता है ||
फिर वही, कुछ गुमसुम , अनाम सा

उसी बे-बसी, भरी निंगाहौ से देखता सा ||

और हर बार सोचने पर, मजबूर कर देता है

वो हर कोई नही करता,जो वो कर देता है ||

 फिर वही, कुछ गुमसुम , अनाम सा

उसी बे-बसी, भरी निंगाहौ से देखता सा ||

और हर बार सोचने पर, मजबूर कर देता है

वो हर कोई नही करता,जो वो कर देता है ||