फिर वही, कुछ गुमसुम , अनाम सा उसी बे-बसी, भरी निंगाहौ से देखता सा || और हर बार सोचने पर, मजबूर कर देता है वो हर कोई नही करता,जो वो कर देता है || फिर वही, कुछ गुमसुम , अनाम सा उसी बे-बसी, भरी निंगाहौ से देखता सा || और हर बार सोचने पर, मजबूर कर देता है वो हर कोई नही करता,जो वो कर देता है ||