ना संधि है,ना विच्छेद है, है मनमुटाव, इसलिए मतभेद है। आंखों का दरिया सूख गया है जिनके इंतजार में, वो कहते हैं रूकावट के लिए खेद है। है आजादी सबको मन मर्जी जीने की, फिर भी आत्मा ना जाने किस पिंजरे मे कैद है। तबियत से पत्थर उछालो तो सही, दैखो शायद आसमां में छेद है। -----------आनन्द ©आनन्द कुमार #आनन्द_गाजियाबादी #Anand_Ghaziabadi #तबियत