कड़ी धूप में पसीने से तरबतर लगातार वो चाक घुमाता जाता था छोटी सुराही की गर्दन आकार लेती जा रही थी चाक की रफ़्तार बढ़ती गयी उँगलियाँ घूमती रहीं सुराही बनती गयी घंटों की मेहनत के बाद जो सुराही को सुखाने को उतारा उस बारह इंच लंबी सुराही की पेंदी में एक आधे सेंटीमीटर का छेद रह गया उदासी, छलनी से छलते आटे की तरह उसकी आँखों से झरती रही छेद था फिर भी उसे तोड़ा नहीं मेहनत की ताबीर थी वो कोने में पड़ी रही कुम्हार हिम्मतवाला था फिर जुट गया सुराही बनाने में। मैं अब रिश्ते नहीं बनाता। #rishte #dard #tuterishte #love