एक ज़िन्दगी इस ज़िन्दगी ने बहुत ठोकरें दी पर रुक कर मरहम लगाने कि हमारी भी आदत नही बहुत कुछ खोया हूँ ज़िन्दगी में पर पीछे मुरकर देखने की हमारी भी आदत नहीं खुली किताबों वाली ज़िन्दगी है क्योंकी बंद पन्नो में रहना हमारी भी आदत नहीं ज़िन्दगी अक्सर दूसरों के लिए ही होती है हाँ तो मतलबी बनकर जीने की हमारी भी आदत नहीं अन्न से ज्यादा धोखे खाया हूँ पर आँख के बदले आँख हमारी भी आदत नहीं #luvuzindgi