पल रहा है तू अभी बरगद की छांव तले , हम भी पलने वाले है धुप के गांव तले । आँधियो ने तो अपना काम कर ही दिया , अकेली चिंगारी क्या करती अलाव तले। बिच समंदर में डूबना तो तय ही था मेरा, अपना कोई छेद कर गया था मेरी नाव तले । ज़ख्म देने के बाद भी न रुका सितमगर वो , नमक भी साथ रख गया वो मेरे घाव तले । पैरों को न थका "राणा" मन्नतो की दौड़ में, एक खुदा का घर भी तो है माँ के पांव तले । दास्ताँ-ए-ज़िन्दगी पल रहा है तू अभी #बरगद की #छांव तले , हम भी पलने वाले है #धुप के #गांव तले । #आँधियो ने तो अपना काम कर ही दिया , अकेली #चिंगारी क्या करती #अलाव तले। बिच #समंदर में #डूबना तो तय ही था मेरा, अपना कोई #छेद कर गया था मेरी #नाव तले ।