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जिस्म से परे है वो,मेरे इश्क का जो मुकाम है भीगो


जिस्म से परे है वो,मेरे इश्क का जो मुकाम है
भीगो दे जो मेरी रूह को,तुम बूंद का वो पानी बनो

सही,ग़लत, कुछ नहीं,ये नज़र-नज़र की बात है
दुनिया ढूंढ़ती है नये को,मेरे लिए तुम पुरानी बनो

गुज़र जाएगा ये दौर भी,कुछ साज़िश,कुछ इत्तेफ़ाक हैं
जिस्मों से जुड़ी रिश्तों की डोर है,मेरे लिए तुम रूहानी बनो

कांटें तो नसीब में बहुत थे,हमें फूल भी कम मिले नहीं
ये ज़िंदगी खुदा की मेहर है,इस ज़िंदगी की तुम मेहरबानी बनो...
© abhishek trehan


 🎀 Challenge-271 #collabwithकोराकाग़ज़

🎀 यह व्यक्तिगत रचना वाला विषय है।

🎀 कृपया अपनी रचना का Font छोटा रखिए ऐसा करने से वालपेपर खराब नहीं लगता और रचना भी अच्छी दिखती है।

🎀 विषय वाले शब्द आपकी रचना में होना अनिवार्य नहीं है। 8 पंक्तियों में अपनी रचना लिखिए।

जिस्म से परे है वो,मेरे इश्क का जो मुकाम है
भीगो दे जो मेरी रूह को,तुम बूंद का वो पानी बनो

सही,ग़लत, कुछ नहीं,ये नज़र-नज़र की बात है
दुनिया ढूंढ़ती है नये को,मेरे लिए तुम पुरानी बनो

गुज़र जाएगा ये दौर भी,कुछ साज़िश,कुछ इत्तेफ़ाक हैं
जिस्मों से जुड़ी रिश्तों की डोर है,मेरे लिए तुम रूहानी बनो

कांटें तो नसीब में बहुत थे,हमें फूल भी कम मिले नहीं
ये ज़िंदगी खुदा की मेहर है,इस ज़िंदगी की तुम मेहरबानी बनो...
© abhishek trehan


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