बावरी, झल्ली, आकाश, समंदर क्या कहूँ तुम्हे? तुम मिली थी मुझे जब खुद की तलाश में था मैं। मिलकर लगा था कि शायद मेरी तलाश यहीं ख़तम होगी अब। सुन रखा था तुम्हारे साथ जो भी कुछ लम्हे बिता लेता था तो कभी भूल न पाता था तुम्हे। वक़्त बीता, मैं तो खुद को मिल गया थोड़ा सा। तुम्हारी तलाश ख़तम न हुई। तुमसे मैं प्रेम तो कर सकता था, इतना कि इंतहा न हो लेकिन तुम फिर भी मेरे नहीं हो सकते थे। तुम मेरे साथ चल सकते थे किसी भी अनजान रास्ते पर, कदम-ब-कदम भी हो सकते थे लेकिन जो लोग आज़ाद ख़यालों के होते हैं न, वो चार दीवार और चार बातों से कैद नहीं हो सकते। तुम्हारे लिए दो ही रास्ते थे मेरे पास- या तो तुम्हे आज़ाद होके प्रेम करता या आज़ाद छोड़ देता। हाँ, तुम्हे छोड़ना पड़ा उसी जंगल में, क़्योंकि की तुम्हे बाँधना मुनासिब नहीं था न ही मुकम्मल था, तुम आज़ाद रहने के लिए बनी हो। सारे धोखों, रिश्तों नातों से अलग इन सब से ऊपर जीना है मक़सद तुम्हारा। और फिर अंत में एक गुमनाम मौत मरना ताकि तुम्हारे जानने वालों को शुबा रहे कि तुम अब भी कहीं घूम रहे होगे, आज़ाद। इस गुमां का होना भी बहुत जरूरी है, उनके लिए जो खुद की तलाश में निकलते हैं। I became free when I lost you. #wilderness #freedom