" उमड़ते यवन की शांत लहरें " तू सवार होता है जब मेरी कश्ती पे ! डगमगाती है कश्ती तरंगों के साथ चलाता है जब दोनों हाथों से चप्पू तो चलने लगती है दोनों की धड़कनें तेजी से एक लय में यूँ चप्पू का चलना देता है दोनों को गर्मी और गति इस गर्मी से उठती है ज्वार की तेज़ लहर एक पे एक लगातार फिर शांत हो जाता है ज्वार टकराकर कश्ती से ! लहरे खो जाती है कश्ती में और फिर ! उंगलिया बढ़ती है चप्पू पे ! लगाने कश्ती को किनारे रफ़्ता रफ़्ता © वरुण " विमला " " उमड़ते यवन की शांत लहरें "