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कभी गरूर था जिस पर,उसे हाथ से जाते देखा। वक्त का द

कभी गरूर था जिस पर,उसे हाथ से जाते देखा।
वक्त का दरिया है यह,यहाँ सबको बहते देखा ।।

©Shubham Bhardwaj
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