मैं भी तो सुनूँ... मैं भी तो जानूँ... ज़ेहन में बसते हैं जो, वो आँखों में कैसे उतरते हैं, कैसे पढ़ लेते हैं हर्फ़-हर्फ़ किसी किताब की तरह। ख़ामोश लम्हे, वो किस्से-कहानियों में ढाल लेते हैं, आँसुओं को भी वो जाने कैसे हँसी में बदल देते हैं, मैं भी तो सुनूँ... मैं भी तो जानूँ... इतने गुलों के बीच वो ख़ुशबू ही कैसे पहचानते हैं, कैसे पढ़ लेते हैं हर्फ़-हर्फ़ किसी किताब की तरह। नाउम्मीदी में भी उम्मीद की डोर लिए खड़े रहते हैं, अजनबी होकर भी अपनी फ़िक्र लिए अड़े रहते हैं, मैं भी तो सुनूँ... मैं भी तो जानूँ... इन हलचलों के बीच वो ख़ामोशी ही कैसे जानते हैं, कैसे पढ़ लेते हैं हर्फ़-हर्फ़ किसी किताब की तरह। ♥️ Challenge-684 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।