बे -बाक सा खड़ा देख रहा है मुझको बड़ी उम्मीद से, देखा जो पास जाके मेने वहां धूल मे लिपटा, मासूमियत से सना बचपन था मेरा.. * बड़ी उम्मीदे थी उसकी आँखो मेँ और ना जाने कितने सवालात जो बस मुझे देखे जा रही थी.. सहर उठा मेँ सुनके ये ज़ब उसने कहा की हु कहा अब मेँ तुझमे बाकि,हत्यारे हो तुम मेरे जिसने समझदारी के नाम पर मार दिया मुझे...* कशुर बस इतना की जीना सिखाता था तुझे.. * देख समय को ना मै रोक सका ना सका बांध , जो बीत गया था वो कल तेरा और जो आएगा वो भी तो है कल तेरा, अपना ले मुझे अपने आज मै, फिर से सीखा दू मै जीना तुझे.. - जो बे-बाक सा खड़ा देख रहा था मुझे वो ही तो बचपन था मेरा.. मेरी डायरी #दाधीच