आसमान का रंग मटमैला सा है जिस तरह मेरा ज़हन। उतना ही विशाल और विक्राल भी उलझनों के साथ बदलते हैं कई सवाल भी.. बादल,बारिश,बिजलियों को अपने पंजो में दबोचे है मुझे लगता है ये भी मेरे मन सा सोचे है हैरत इसे भी तो अपने होने पर होती होगी आँखे इसकी भी तो बादलों की आड़ लेकर रोती होगी इस शाम का दृश्य विचलित करने वाला है क्या कुछ है जो अब बदलने वाला है ये बदलाव भी विचित्र है ,दांव पर चरित्र है चरित्र उस चाँद सा है, जिसमे अनगिनत दाग़ भी हैं बरसो से जल रही कहीं वो आग भी है वो आग जिससे जलन अब जाकर होती है क्यूँ ठेहरे हुए किनारों को ये लहरे भिगोतीं हैं।। #who_सिddhantसिngh? 🙏 #reading