मेरी परछाई मेरा दिल में अंधेरा और तन्हाई है दिल भी जलता है बजती जब शहनाई है सामने सब कहार डोली लेकर खड़े हैं इन खुशियों में आंखें क्यों भर आई है वो जो बन ना सकी मेरे सावन की खुशबू अब किसी और के आँगन की पुरवाई है मोहब्बत तो मिलने बिछड़ने का दस्तूर है छट रही हैं घटाएँ कलियाँ मुस्काई है जिस्म है किसी का ,पर रूह को है सुकून मुझको मालूम है ,वो मेरी परछाई है। कवि - अंकित दुबे #मेरीपरछाई