"बढ़े मिसरा-ए-ऊला से गये मिसरा-ए-सानी तक। लगी है प्यास लेकिन अब चलेगा कौन पानी तक।। , किसी ने दरअसल हमसे कभी मिन्नत नहीं की थी। बिना क़िरदार के थे हम गये थे ख़ुद कहानी तक।। , लिखेंगें रातभर कुछ भी यकीनन जागना होगा। बढ़ेंगें ख़ुद पड़े जो है ये सारे लफ़्ज़ मानी तक।। , तलातुम एक दरिया का सदा क़ाएम नहीं रहता। लेकिन ग़फ़लत है तुमको ये लिखेंगें हम जवानी तक।। , यही कल रात भर हमकों नहीं जब नींद आई तब। उठाकर शॉल हाथों में गये थे रात रानी तक।। , मुक़द्दर में नहीं था जो मयस्सर हो नहीं सकता। वो जिसका था गया है बस उसी के ज़िंदगानी तक।। , जमीं को ओढ़कर साहिल क़ब्र में लेट जाऊँगा। मगर मैं याद आऊँगा सभी को जावेदानी तक।।" #रमेश मिसरा-ए-उला-शेर की पहली पंक्ति। मिसरा-ए-सानी-शेर की दूसरी पंक्ति।। मयस्सर-नसीब जावेदानी-अनन्तकाल