बजट उनके आने की आहट मात्र से धरा पर अद्भुत प्रभाव दृष्टिगोचर हो ना आप आराम हो जाता है नौकर पर स्लो गायकार के बिल्कुल का प्रयास बढ़ाने के अनुमान में खोए खोए से रहने लगते हैं टीवी पर चलने वाली बहस कंगना के बोल श्वेता तिवारी के बकलोल और विराट की कप्तानी छोड़ने की रोचक विषयों को पहचानते हुए सकल घरेलू उत्पाद राजकोषीय घाटा जैसी अजूबी पहेलियों उस पर केंद्रित हो जाती आम आदमी बजट में राहत तलाश आरंभ कर देते हैं बजट का दर्शन चा वकवादी होना के पर्याप्त आधार हैं इससे बनते वक्त सरकारी अनासन ही जितनी चादर है उतने ही पांव पसारना जैसे अलौकिक सिद्धांत के दायरे को तोड़ फोड़ते हैं यही श्रेणी में लाते हैं यद्यपि सरकार की नजर नहीं आती उसके अफसरों और मंत्रियों की उंगलियों को भी में होने वाली बात अवश्य सुनने में आती है बजट वाली श्रेणी में सब्सिडी दी जाती है सब्सिडी से वोट आते हैं वोट को सरकार के लिए भी मान लिया जाए तो चारों दर्शन इति सिद्ध हो जाता है बजट अपरिग्रह बाद का भी पोषक होता है इसमें अक्सर विनय के लक्ष्य रखे जाते हैं इसी सिद्धांत पर एयर इंडिया जैसे परी कराओ से मुक्त होना संभव हुआ है बजट को देखा लगता है जैसे कि भगवान कुरुक्षेत्र में वित्त मंत्री अर्जुन की शंका का समाधान कर रहे हो ©Ek villain #अर्थशास्त्र का आध्यात्मिक अध्ययन #friends